नीतीश की पार्टी में भी मोदी एक हद तक दरार डालने में सफल हुए हैं।
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सो ज्यादातर लोगों ने इसे मिट्टी को कूट-कूट कर पाटने की कोशिश की पर दूसरे-तीसरे दिन तक दरार फिर जैसी की तैसी दिखाई पड़ती।
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जेएनयू के एक छात्र का कहना था, “जब इस देश में अनुसूचित जाति और जनजाति और पिछड़ा वर्ग के लिए आरक्षण की सूची बनी थी तो क्या उससे सांप्रदायिकता बढ़ी थी या समाज किस हद तक बँटा था, जब सिखों के लिए इसी तरह की विशेष सुविधाएँ दी जाती हैं तो समाज में किस हद तक दरार पैदा होती है, तो मुसलमानों के लिए ऐसी किसी विशेष व्यवस्था का नाम आते ही हाय तौबा क्यों मचने लगती है.”